कला तथा सौंदर्यशास्त्र विद्यालय का शिक्षण बताता है कि इसका एक मज़बूत अनुसंधान प्रोफाइल है। इसके नवीन पाठ्यक्रम, एक ओर कला इतिहास, वास्तुकला, साहित्य तथा सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों के छात्र/छात्राओं को तो, दूसरी ओर सिनेमा तथा प्रदर्शन कलाकारों को जो, कला के सैद्दांतिक तथा एतिहासिक प्रसंग के साथ शामिल होना चाहते है, को आकर्षित करते हैं। इसकी शिक्षा, संस्कृति, मीडिया, भारतीय विरासत और कला के व्यापक क्षेत्र के अंतर्गत, अनुसंधान तथा रोज़गार की आवश्यकताओं को पूरा करती है। यह भारत में उन कुछ स्थानों में से एक है जो, सिनेमाई, द्रश्य तथा प्रदर्शन कला के सैद्दांतिक तथा महत्वपूर्ण अध्ययन में स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम प्रदान करता है। इसके अलावा, भारत में यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ, इन विषयों को एक एकीकृत कार्यक्रम में प्रस्तुत किया जाता है जो, छात्र/छात्राओं को व्यक्तिगत कलाओं को, एक दुसरे के संबंध में, तथा साथ ही इतिहास, सामाजिक शास्त्र, राजनीति, सांकेतिकता, लिंग तथा संस्कृतिक अध्ययन के व्यापक संदर्भ में समझने की अनुमति प्रदान करता है। विद्यालय में प्रस्तुत किये जाने वाली अध्ययन की तीन धाराएँ थिएटर तथा प्रदर्शन अध्ययन और सिनेमा अध्ययन है।
एसएए का शैक्षणिक द्रष्टिकोण का मानना है कि, कला के कार्य का एक “वस्तु” के रूप में, एकांत में, उन सामाजिक ताकतों से दूर जो उसे एक आकार तथा अर्थ देतीं है, अध्ययन करना पर्याप्त नहीं है। यहाँ शिक्षा बहुविषयक द्रष्टिकोण को अपनाती है जो नृविज्ञान, इतिहास, मीडिया तथा संस्कृतिक अध्ययन के क्षेत्रों से सम्पूर्ण ज्ञान का निष्कर्ष हासिल करती है। छात्र/छात्राओं को अनुसंधान की विभिन्न विधियों को बतलाया जाता है जो, अभिलेखीय, नृवंशविज्ञान, सैद्धांतिक और सांस्कृतिक द्रष्टिकोण को एकजुट करतीं हैं।
विद्यालय सीखाये या पढाये गए डिग्री कार्यक्रमों पर ध्यान केन्द्रित करता है। सभी अध्यापक छात्र/छात्राओं को- तथा अन्य इच्छुक व्यक्तियों को- दिल्ली की संपन्न संस्कृति का, प्रदर्शनियों, थिएटर, फिल्म तथा संगीत समारोहों में शामिल हो कर लाभ उठाने को प्रोत्साहित करतें हैं। विद्यालय स्मारकों तथा संग्रहालयों के लिए, तथा पारंपरिक थिएटर, संगीत तथा नृत्य प्रथाओं की समीक्षा करने हेतु, भारत भर में, क्षेत्रों के दौरे आयोजित करता है। विद्यालय के पास इसकी स्वयं का गैलरी स्थान है जिसका यह छात्र/छात्राओं तथा अध्यापकों द्वारा बनाई गई समकालीन तथा ऐतिहासिक कला की प्रदर्शनियों को आयोजित करने के लिए उपयोग करता है। तथा कभी-कभी, विद्यालय, भारत के अन्य संस्थानों के सहयोग के साथ, अपने परिसर के बाहर के सिनेमाई तथा प्रदर्शन कला की प्रदर्शनियों तथा त्योहारों के आयोजनों में भी शामिल होता है।
द्रश्य अध्ययन संकाय, प्राचीन तथा मध्ययुगीन भारतीय कला और वास्तुकला, चित्रकला, सौन्दर्य सिद्दांतों, मुग़ल तथा राजपूत चित्रकला, आधुनिक तथा समकालीन कला, तथा लोकप्रिय संस्कृति पर पाठ्यक्रमों को पेश करता है। यह सब उन पाठ्यक्रमों के साथ सीखाया जाता है जो, छात्र/छात्राओं को द्रश्य कला तथा संस्थानों के इतिहास को बनाने की उन सामग्रियों तथा विधियों से अवगत करता है जो उन्हें संग्रहित, प्रदर्शित तथा प्रोत्साहन प्रदान करतें हैं। दुनिया भर की तरह, भारत में कला जहाँ एक स्तर पर संस्कृति की सबसे स्पष्ट अभिव्यक्ति है, तथा वहीँ दूसरी और कई बार, सबसे कम समझे जाने वाली या गलत समझे जाने वाली अभिव्यक्ति है। जेएनयू कला गैलरी में आयोजित हाल ही की प्रदर्शनियों की सफलता ने छात्र/छात्राओं के लिए छात्रवृति की उच्चतम डिग्री लाने के अनोखे तरीके को साबित किया है, साथ ही व्यापक सार्वजानिक पहुँच से बाहर की परियोजना को भी पूरा किया है।
थिएटर तथा प्रदर्शन अध्ययन में, थिएटर, नृत्य, संगीत के अध्ययन के साथ-साथ अन्य गैर-सौन्दर्यात्मक प्रदर्शन जैसे कि अनुष्ठान, चिकित्सा तथा सार्वजानिक दर्शक भी शामिल है। भारत में, अनगिनत थिएटर, अर्द्ध-थिएटर, तथा शास्त्रीय, लोक तथा आदिवासी नृत्य, अभी भी जिन्दा हैं तथा बहुत लोकप्रिय है। उनकी प्रकृति, ‘शास्त्रीय’ तथा ‘लोक’ के बीच किसी भी सख्त विरोध पर आधारित नहीं है। इसके अलावा, भारत की शास्त्रीय परंपरा भी क्षेत्र भर में तथा उच्च तथा निम्न संस्कृति के स्तरों के माध्यम से फैली हुई प्रतीत होती है। इस क्षेत्र में वर्तमान संकाय, प्राचीन, मध्ययुगीन, तथा समकालीन भारतीय रंगमंच के क्षेत्रों में पाठ्यक्रमों को शामिल करता है, जबकि दौरे पर आने वाला संकाय, नृत्य तथा संगीत के इतिहास के क्षेत्रों में निर्देश प्रदान करता है। पाठ्यक्रमों को इस प्रकार तैयार किया गया है कि वह परस्पर सिद्दांत तथा अभ्यास के बिन्दुओं, प्रदर्शन तथा इतिहास, मौखिक तथा अमौखिक आयामों पर प्रकाश डाल सकें। यह हमारे पाठ्यक्रमों की शैली/रचनाओं में निरंतरता के प्रवाह की अनुमति प्रदान करता है।
सिनेमा अध्ययन सबसे महत्वपूर्ण शैक्षणिक विषयों में से एक है जो पिछले कुछ दशकों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर आया है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, सिनेमा के जन्म के बाद से, दुनिया की हमारी समझ बदल गयी है तथा फिल्म, दोनों, सामाजिक संसथान के तौर पर तथा 20वीं सदी की सबसे लोकप्रिय कला के रूप में विकसित हुईं हैं। एक विषय के रूप में, सिनेमा अध्ययन अत्यंत बहुविषयक है तथा यह साहित्य, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनिति विज्ञान, नृविज्ञान, तथा अन्य के साथ अर्थशास्त्र की सामग्री तथा विधियों को आरेखित करता है। ।
भारत आधी सदी से, बहुत सी विभिन्न भाषाओँ के आउटपुट के साथ में दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म उत्पादक देश रहा है। प्रदर्ष तथा प्रतिनिधित्व की स्थानीय परपराओं के लिए प्रतिक्रिया देने के साथ, भारतीय फिल्म उद्योग ने एक विशिष्ट रूप तथा सौन्दर्य विकसित किया है। आज, भारतीय सिनेमा, रूस, मिडिल ईस्ट, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका तथा भारतीय प्रवासियों के बाहरी दर्शकों के लिए, देश के बाहर व्यापक रूप से परिचालित है। भारतीय सिनेमा वह स्क्रीन है जिसके माध्यम से दुनिया के बहुत से भाग भारत को ‘देखते’ हैं। सिनेमा अध्ययन का परिचय, विद्यालय के कार्यक्रमों के लिए एक मुख्य शैक्षणिक उपलब्धि है।